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ये है भारत की पहली महिला ऑटो ड्राइवर शीला दावरे, जानिए कैसा रहा उनका अब तक का सफर motivational story in hindi first women auto driver of india

 ये है भारत की पहली महिला ऑटो ड्राइवर शीला दावरे, जानिए कैसा रहा उनका अब तक का सफर

ये है भारत की पहली महिला ऑटो ड्राइवर शीला दावरे, जानिए कैसा रहा उनका अब तक का सफर motivational story in hindi first women auto driver of india

ये है भारत की पहली महिला ऑटो ड्राइवर शीला दावरे, जानिए कैसा रहा उनका अब तक का सफर

हमारे देश की महिलाओं ने हर तरफ अपना लोहा मनवाया है। महिलाओं ने सभी क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश को अपना अहम योगदान दिया है। भारतीय महिलाओं ने राजनीति, खेल से लेकर बॉलीवुड तक अपना परचम लहराया हैं। इन्हीं लिस्ट में देश की पहली ऑटोरिक्शा चालक शीला दावरे का नाम भी शामिल हैं। शीला दावरे ने 1988 में रूढ़ीवादी मान्यताओं को तोड़ते हुए ऑटो-रिक्शा चलाना शुरू किया था।

 देश की पहिला महिला ऑटो ड्राइवर शीला दावरे की कहानी

 शीला दावरे को आज देश पहली महिला ऑटो ड्राइवर के रूप में जानती है, शीला ने 12वीं की पढ़ाई के बाद 18 साल की उम्र में हाथों में महज 12 रूपये लिए अपने घर को छोड़ दिया था। शीला दावरे आंखों में कई सपने लिए घर छोड़कर पुणे आ गई थी।

यहाँ से हुई टैक्सी चलाने की शुरुआत

 यह अस्सी के दशक की बात है, तब उस ज़माने में केवल पुरुष ही खाकी ड्रेस पहनकर टैक्सी चलाया करते थे। ऐसे में शीला ने सलवार कमीज पहनकर ऑटो चलाना शुरू किया, इस दौरान उन्होंने काफी विरोध का सामना किया लेकिन वे पीछे नहीं हटी। शीला दावरे ने ऐसे टाइम पर ऑटो चलाना शुरू किया, जब महिलाये ऑटो में अकेली सफर तक नहीं करती थी। ऑटो लेकर शिला जहां से भी निकलती थी, लोग उन्हें हैरानी की नज़रों से देखते थे। शिला बताती है कि शुरुआत में लोग उन्हें सिर्फ महिला होने की वजह से ऑटो किराए पर देने से डरते थे। मगर धीरे-धीरे पैसा जोड़कर और यूनियन की मदद से उन्होंने खुद का एक ऑटो रिक्शा खरीदा। वहीं ऑटो चलाने के दौरान उनकी मुलाकात पति शिरीष कांबले से हुई थी। शिरीष भी ऑटो ड्राइवर हैं, 2001 तक पति शिरीष और शीला दावरे अलग अलग ऑटो चलाते थे। करीब 13 साल तक ऑटो ड्राइवरी करने के बाद स्वास्थ्य नहीं होने के कारणों उन्हें यह काम छोड़ना पड़ा। 

आजकल कहाँ है

आज वह और उनके पति अपनी ट्रैवल कंपनी चलाते हैं। उनके पति शिरीष ने हमेशा उनका साथ दिया। शीला बताती है कि, ‘मेरे माता-पिता ने भी इस फैसले का जमकर का विरोध किया था। लेकिन आज उन्हें इस मुकाम पर देखकर बेहद ही खुश होते हैं। अब शिला का सपना एक अकादमी खोलने का है जहां महिलाओं को ऑटो रिक्शा चलाने का प्रशिक्षण दिया जा सके। बता दें कि भारत की पहली महिला ऑटो ड्राइवर के तौर पर उनका नाम लिम्का बुक में भी दर्ज हो चुका है।

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